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कविता संग्रह >> बोलना सख्त मना है

बोलना सख्त मना है

पंकज मिश्र अटल

प्रकाशक : बोधि प्रकाशऩ प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16031
आईएसबीएन :9789385942099

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नवगीत संग्रह


आगे चलकर नवगीतकार ने आस-पास की उन चीजों को अपने नवगीतों के विषय के रूप में प्रयोग किया जो कि पूर्णतया नेग्लेक्टेड थी, उन्होंने अपरम्परावादी सोच के साथ वैचारिक संकीर्णता के स्थान पर तार्किकता, बौद्धिकता, विसंगतियों, कुंठाओं, विडम्बनाओं और विकृतियों को विषयों के रूप में अपनाया और नवगीतों में इन विषयों को अभिव्यक्ति प्रदान की। नए सोच, नवीन अनुभूतियों, नए शिल्प के साथ नवगीत अपने युग की कविताओं विशेषकर जनपक्षीय कविताओं के पैरेलल एक गीतात्मक आंदोलन बना। सामाजिक सरोकारों और जन की चिंताओं से जुड़े होने के कारण नवगीत यद्यपि बिना किसी खेमे से जुड़े ही विभिन्न साहित्यिक बहसों के केन्द्र में रहने लगा, लेकिन इसी संघष यात्रा में बढ़ते-बढ़ते नवगीत एक सशक्त गीत विधा के रूप में भी स्थापित होने लगा।

नवगीत ने अपने प्रारम्भ से ही कुछ मूलभूत विशेषताओं को स्वयं में समाहित किया और यही कारण रहा कि नवगीत अपनी अलग पहचान स्थापित कर सका है, उसकी अपनी आइडेंटिटी है।

बात जब नवगीत की पहचान की है तो यह स्पष्ट करना भी आवश्यक है कि आज जबकि संबंधों में खोखलापन आता जा रहा है, प्रत्येक व्यक्ति कैल्कुलेटिव होता जा रहा है और प्रत्येक व्यक्ति अनेकानेक चेहरों के साथ नजर आ रहा है, अभिरुचियों में भी परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहे हैं, ऐसे में नवगीत के कैनवास को भी व्यापक होना पड़ेगा, अन्यथा नवगीत विधा पर भी प्रश्नचिह्न लगना कोई अप्रत्याशित बात न होगी।

नवगीत की शास्त्रीय विवेचना में न जाते हुए मैं अपने इस नवगीत संकलन के संदर्भ में कुछ कहने या कुछ लिखने से पूर्व यह बताना उचित समझता हूं कि साहित्य की कोई भी विधा हो, वह मेरे लिए एक सशक्त हथियार की ही भांति है । मैंने अपनी पुस्तक 'नए समर के लिए' में लिखा भी है कि, "वास्तव में कविता इस टूटते परिवेश को जहां नया रूप देती है, वहीं तोड़ने वाली शक्तियों के सम्मुख भोली जनता को जाग्रत करके तनकर खड़ा होने और संघर्ष करने की शक्ति भी प्रदान करती है।" यही नहीं इसी पुस्तक में मैंने यह भी लिखा है कि "आज किसी ऐसे युद्ध की आवश्यकता नहीं है, जिससे जन की हानि हो, अपितु वैचारिक क्रांति की आवश्यकता है, जिससे मानवीय मस्तिष्क को सोचने के लिए विवश किया जा सके, उसे बुद्धिवाद से जोड़कर मानवाधिकारों और मानवता के संदर्भ में विचार करने के लिए बाध्य किया जा सके और इस वैचारिक क्रांति के द्वारा उसमें निहित ध्वंसात्मक पवृत्तियों की तरफ से उसे मोड़ा जा सके।"

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    अनुक्रम

  1. गीत-क्रम

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